दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर।
चोपता—तुगंनाथ—तीर्थनगरी ऋषिकेश से श्रीनगर गढ़वाल होते हुए अलकनंदा के किनारे-किनारे रुद्रप्रयाग पहुंचने पर यदि ऊखीमठ का रास्ता लेना है तो अलकनंदा को छोडकर मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। यह मार्ग अत्यंत लुभावना और सुंदर है। आगे बढ़ते हुए अगस्त्य मुनि नामक एक छोटा सा कस्बा है जहां से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दर्शन होने लगते हैं।
तुंगनाथ मंदिर— चोपता की ओर बढते हुए रास्ते में बांज और बुरांश का घना जंगल और मन को हर देने वाला दृश्य पर्यटकों को लुभाता है। चोपता समुद्रतल से बारह हज़ार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से तीन किमी की पैदल यात्रा के बाद तेरह हज़ार फुट की ऊंचाई पर तुंगनाथ मंदिर है, जो पंचकेदारों में एक केदार है। चोपता से तुंगनाथ तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार कराता है। यहां पर प्राचीन शिव मंदिर है। इस प्राचीन शिव मंदिर से डेढ़ किमी की ऊंचाई चढ़ने के बाद चौदह हज़ार फीट पर चंद्रशिला नामक चोटी है। जहां ठीक सामने छू लेने योग्य हिमालय का विराट रूप किसी को भी हतप्रभ कर सकता है। चारों ओर पसरे सन्नाटे में ऐसा लगता है मानो आप और प्रकृति दोनों यहां आकर एकाकार हो उठे हों। तुंगनाथ से नीचे जंगल की सुंदर रेंज और घाटी का जो दृश्य उभरता है वो अपने आप में ही अनूठा है।
चंद्रशिला उत्तराखंड के सबसे प्रसिद्ध ट्रेकिंग डेस्टिनेशन में से तृतीय केदार के नाम से प्रसिद्ध जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रमा द्वारा की गई कठोर तपस्या की वजह से इस स्थान को चंद्रशिला कहा जाता है। तु्ंगनाथ का ट्रेक करने में करीब 3 से 4 घण्टा का समय लग जाता है इसे दुनिया का सबसे उँचा शिव मन्दिर माना जाता है यहॉ श्र्रद्धालू दर्शन करके चन्द्रशिला चोटी की ओर बढते है चन्द्रशिला की दूरी तुंगनाथ से करीब 1.5 किलामीटर है।
चन्द्रशिला चोटी पहुँचने के बाद स्वर्ग के समान प्रतीत है यहॉं से बादलों को अपने से नीचे की ओर उडते हुए देख सकते हैं। इसके अलावा चन्द्रशिला से नन्दादेवी, केदार चोटी, त्रिशूल, और बन्दरपूछ की चोटियों की खूबसूरती शब्दों द्वारा बयां नहीं की सकती है।