लोहाघाट में दिखता है प्रकृति का श्रृंगार।

पहाड़ों की सैर करते—करते सैलानी का मन पंछी की तरह चंचल हो जाता है।

सैर With सर्वेश- दूर और दूर तक पसरी सुंदर घाटियां उसे निकट और निकट बुलाती है। बस इसी आकर्षण में सैलानी लोहाघाट जैसे चितचोर स्थान पर पहुंच जाते हैं।
पिथौरागढ़ से लगभग 61 किमी0 की दूरी पर लोहाघाट है। यहॉ की यात्रा ही इतनी लुभावनी है कि आभास ही नहीं होता कि सैर करने की ललक हिमालय के पास तक ले आई है। प्रकृति के जो भी श्रृंगार होते हैं। यहॉ देखने को मिल जाएंगे। देवदार वृक्षों की श्रृंखला, हरे—भरे घास के ढलान और फूल पत्तियों की जुगलबंदी मन मोह लेती है।  घटोत्कच मंदिर: यहॉ खूबसूरत प्रकृति के बीच महाभारत की स्मृतियां रोमांचित करती हैं। लोक कथा है कि महाभारत के युद्ध में भीम का पुत्र घटोत्कच कर्ण के हाथों मारा गया। अपने पुत्र की याद में इस देवभूमि में भीम ने यह मंदिर बनवाया था। मायावती आश्रम: कल्पनाओं को साकार करता यह आश्रम लोहाघाट से 12 किमी. दूर नैसर्गिक वातावरण में है। यहॉ पर रामकृष्ण आश्रम है। स्वामी विवेकानंद को इस स्थान पर प्रकृति ने लगभग दो सप्ताह तक प्रवास के लिए रोका।


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