कवि व लेखकों का पसंदीदा स्थान है यह

वह लेखक मन इन्हीं किन्हीं घाटियों में कुलाचें मारने लगा। मन हिमश्रृंखलाओं की ओर भागा तो रविन्द्रनाथ टैगोर कुछ दिनों के लिए रामगढ़ के ही होकर रह गए। विश्वकृति गीतांजलि की भव्यता पर इस घाटी की मनोरमा का प्रभाव पड़ा। यहीं पर कुछ अंश लिखे और लेखक ने सांध्य गीत की रचना कर डाली।

कुमाऊं की सुरम्यता में शब्द और नि:शब्द दोनों का आभास होता है। नैनीताल व उसके आसपास झील एवं तालों का सौंदर्य फैला है। सरोवरी से जुड़ी है झील—तालों की श्रृंखला खुरपाताल,भीमताल,नैकुचियाताल,सातताल और नल दमयन्ती ताल।  नैनीताल से लगभग 30 किमी की दूरी पर 1789 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है रमणिक रामगढ़।  कवि रविन्द्रनाथ टैगोर एक बार रामगढ़ पहुंचे और यहॉ के सौंदर्य से अभिभूत होकर कुछ दिनों के लिए रामगढ़ के ही हो गए। विश्वकृति गीतांजलि की भव्यता पर इस घाटी की मनोरमता का प्रभाव पड़ा। यहीं कुछ अंश लिखे। कवि ने सांध्यगीत की रचना भी यहीं की थी। हिन्दी साहित्य में छायावाद की महान कवयित्री महोदेवी वर्मा को तो यह स्थल इतना आकर्षित कर गया कि उन्होंने इस स्थान से लगे रामगढ़ में एक भवन खरीदा और ग्रीष्म काल में यहीं प्रवास करने लगी। इस स्थान पर कवयित्री को शांत सौंदर्य रूपी साथी मिल गया। वे इस साथी की पदचाप सुनती, बातें करती और कविताओं के माध्यम से उससे अठखेलियां करती। उनके भवन को वर्तमान में महादेवी साहित्य संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है।