प्रकृति से विरासत में मिला शिल्प।

पहाड़ी राज्य उत्तरखण्ड के रमणिक और धार्मिक स्थलों पर जो कलाकृति नजर आती है वह सब शिल्पकारों की देन है। इस हिमालयी क्षेत्र को शिल्प प्रकृति से विरासत में मिला है। साथ ही यह अंचल मानव के पुरा—पाषण कालीन शिल्प और सभ्यता से भी हमें अवगत कराता है। जगह—जगह गुफा चित्र,शवाधान, लोहालाट पत्थरों में उखल जैसे गड्ढे कैतुहल पैदा करते हैं। तांबे,लोहे,सोने,चांदी के खनन से लेकर उनके धातुकर्म के प्रमाण हैरान करते हैं। मृतभाण्ड से लेकर मजबूत ईटं बनाने तक का यहॉ विज्ञान मिलता है। साथ ही प्रस्तर और काष्ट शिल्प की अद्वितीय उपलब्धियां मिलती है। सौंन्दर्य कला और संस्कृति की अनुपम विरासत है हिमालयी शिल्प। पौराणिक, ऐतिहासिक,धार्मिक धरोहरों के साथ—साथ यह एक पूरा विज्ञान भी है। हिमा की स्थापत्य कला, मूर्तिकला,भूकंप प्रतिरोधी भवन निर्माण, लोक उपकरण से लेकर तमाम लोक विधियों में यह पारंपरिक विज्ञान पूरे वैभव के साथ अभिव्यक्त होता आया है। हमारे आर्षग्रंथों में अनेक शिल्प विधाओं का विशद उल्लेख है। यहॉं केदारनाथ,जागेश्वर,बैजनाथ,कटारमल,लाखामंडल,हनोल,बालेश्वर मन्दिरों की स्थापत्य कला चकित करती है तो एक हथिया देवाल,एक ​हथिल नौला,पाताल,भुवनेश्वर,बैजनाथ,जागेश्वर,कटारमल,लाखामंडल,बिनसर,मोरध्वज का शिल्प और उनकी मूर्ति कला हैरान कर देती है।


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