शिव का शीतकालीन प्रवास ऊखीमठ।
केदारनाथ से केदार आए और यहां चिरकाल तक विराजे। इसी से लगा हुआ है सुंदर मंदिर परिसर ओंकारेश्वर का। मंदाकिनी घाटी में गुप्तकाशी के ठीक सामने ऊखीमठ है। यहीं भगवान केदार के दर्शन किए जाते हैं।
मंदिर परिसर में भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और वाणासुर की पुत्री ऊषा की विवाह वेदिका स्थल आज भी यहां मौजूद है। यह सब दृश्य आपको रोमांचित कर देंगे। यह 1311 मीटर की ऊंचाई पर है और रुद्रप्रयाग से 41 किलोमीटर की दूरी पर है। सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर और मध्यमहेश्वर से मूर्तियों (डोली) को उखीमठ रखा जाता है और छह माह तक उखीमठ में इनकी पूजा की जाती है। उत्तराखंड के उखीमठ का संबंध द्वापर और सतयुग से माना जाता है। यहां पर भगवान राम के वंशज राजा मांधाता ने भगवान शिव की तपस्या की थी जिससे भगवान शिव ओंमकार ध्वनि स्वरूप में प्रकट हुए थे। इसलिए यह स्थान ओंकारेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। उखी मठ के ओंकारेश्वर में ही शीतकाल में भगवान केदारनाथ और मदमहेश्वर नाथ शीतकाल में विराजते हैं। सच में कहा जा सकता है कि अप्रतिम है शंकर का शीतकालीन प्रवास।