इन्हीं वादियों में खो गया था अंग्रेज विल्सन।
गंगा के उद्गम स्थल, गोमुख, से मात्र 43 किलोमीटर पहले भागीरथी के दक्षिणी छोर पर खूबसूरत घाटी में एक छोटा सा कस्बा है। वर्ष 1859 में विल्सन नामक एक अंग्रेज सैर करता हुआ इस जगह पहुंचा। उसे यह जगह इतनी प्रिय हुई कि उसने सन 1864 ई0 में यहां पर एक विशाल कॉटेज बनवाया और इसी खूबसूरत घाटी का वासी बनकर रह गया। विल्सन ने यहां एक खूबसूरत घर बनाया, जिसे विल्सन कॉटेज कहा जाता था। किन्तु कुछ शरारती घूमकड़ों या लोगों की गलती से विल्सन कॉटेज जलकर राख हो गई। विल्सन कॉटेज के नाम से पहचाने जाने वाला हर्षिल अब कॉटेज की अतीत की स्मृतियों को संजोए है। कोई भी प्रकृति प्रेमी यहां क्षणभर रुक लेता है, तो इस जगह को अपना ही समझने लगता है। ठीक वैसे ही जैसे कल्पनाओं में खोया हुआ सा कोई सौलनी प्रकृति की गोद में लीन हो जाता है। नदी के किनारे चोरों के ओर फैली हरियाली, दूर के पहाड़ों में फैली बर्फ की चादर, और उस पर छोटा सा घर, एकदम शांत। विल्सन के सपनों का संसार है हर्षिल। हर्षिल के पास ही बगोरी गाँव है। इस छोटे से गाँव में भोटिया जनजाति के लोग निवास करते हैं। प्रकृति के रंगों की तरह मस्त गीत-संगीत और उल्लास लिए गाँव में प्रकृति मन को लुभाती है। गाँव में सेब के बगीचे, पानी के स्रोत छल-छल करते हुए, जैसे भागीरथी का आलिंगन करते हैं। विल्सन भवन निर्माण और पुलों का विशेषज्ञ था, इसी कारण हर्षिल की वादियों में उसने खूबसूरत डाक बंगलों का निर्माण भी कराया। इन्हीं वादियों में उसने सेब के बगीचे लगाए। आलू की खेती प्रारम्भ करवाई। इसी का परिणाम है कि आज हर्षिल के सेब और आलू पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।